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अनुभूति में कृष्ण शलभ की रचनाएँ-

बाल गीतों में-
अमर कहानी
एक किरन
किरन परी
चले हवा
टेसू माँगे
धूप

अंजुमन में-
अगर सूरत बदलनी है
उसकी बातों पे
कहीं से बीज इमली के
चेहरे पर चेहरा
जाने हैं हम
हर तरफ़ घुप्प-सा

  धूप

बिखरी क्या चटकीली धूप
लगती बड़ी रुपहली धूप

कहो कहाँ पर रहती बाबा
कैसे आती जाती है
इतनी बड़ी धूप का कैसा
घर है, कहाँ समाती है
बिना कहे ही चल देती, है
क्यों इतनी शरमीली धूप?

क्या इसको टहलाने लाते
सूरज बाबा दूर से
देर रात तक ठहर न पाते
दिखते क्यों मजबूर से
जब देखो तब सूखी, होती
कभी नहीं क्या गीली धूप

कभी पेड़ से चुपके-चुपके
आती है दालान में
और कभी खिड़की से दाखिल
होती लगे मकान में
आग लगाती आती, है क्या
यह माचिस की तीली धूप!

४ जनवरी २०१०

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