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गीत

अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता

चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

चेहरे पर हों

चेहरों पर हों कुछ उजाले, सोचता हूँ
लोग हो खुशियों के पाले, सोचता हूँ

जिस्म के काले जो होते दुख नहीं था
शख्स है पर मन के काले, सोचता हूँ

आदमी गर आदमी से प्यार करता
यूं न बहते खूं के नाले, सोचता हूँ

ढूँढ़ लेता मैं कहीं उसका ठिकाना
पांव में पड़ते न छाले, सोचता हूँ

'प्राण' दुख आए भले ही ज़िंदगी में
उम्र भर डेरा न डाले, सोचता हूँ

४ सितंबर २००३

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