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अनुभूति में डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -

नये हाइकु-
धूप पंखुरी


हाइकु में-
सर्द दिन

माहिया में-
धूप छाँह सा मन

छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम

क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान

संकलन में-
वसंती हवा-फागुनी आँगन
घरौंदा
धूप के पाँव-अमलतासी धूप

नववर्ष अभिनंदन-नव स्वर देने को

 

 

धूप पंखुरी


चिरैया उड़ी
तेज आँधी से लड़ी
बिखरे पंख।

नींद नदी-सी
लहरों-सा सपना
बहता रहा।

दूर है नाव
लहराता-सा पाल
हवा उदास।

भीगे हैं तट
पदचाप बनाती
बिखरी रेत।

नदी-सा मन
बहता लहरों-सा
सागर हुआ।

डूबती साँझ
जीवन-सी उतरी
विदा के रंग

धूप-पंखुरी
खिली फागुन बन
बजे मृदंग

९ मार्च २०१५

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