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                   अनुभूति में
					विक्रम पुरोहित की रचनाएँ- 
					छंदमुक्त 
					में- 
					औघड़ 
					कविता बचती है 
					खामोशी 
					दो कबूतर 
					बचपन 
					छोटी कविताओं 
					में- 
					पाँच छोटी कविताएँ  | 
                
     
                 | 
                
					 दो कबूतर 
					 
					आज फिर, 
					कई दिनों के बाद  
					अच्छा लगा  
					उन दोनों कबूतरों का  
					कमरे मे आना  
					जिन पर  
					लिखी थी चंद रोज़ पहले  
					मेने एक नन्ही कविता ! 
					मगर आज  
					नहीं थी पहले-सी गूटर-गूँ 
					एक अंतहीन खामोशी थी  
					उनके ओर मेरे बीच  
					मैं उन्हे देख मुस्कुराया 
					प्रतिक्रिया स्वरूप, 
					उन्होने अभिवादन मे  
					पंखों को फड़फड़ाया  
					आंखो ही आँखों मे  
					एक-दूजे का हाल समझाया  
					कितना सहज , 
					इन परिंदो को समझाना , 
					वरना उम्र बीत जाती है इंसानों को समझाने में ! 
					२ जनवरी २०११  |