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वर्षा मंगल- नीरद डोल रहे
वर्षा मंगल- वर्षा आई

वेदनाओं से भरा मन

डूब जाना चाहता है
वेदनाओं से भरा मन

कोई दूर बैठ देखो
मारता है तीर गम के
विष भरा घट हाथ में ले
जल पिलाया आज थम के

सो रहा है चैन से वो
दर्द से अब है हरा तन

आज घर की दीमकों ने
चुन लिया है जिस्म मेरा
खोखला मैं हो चुका हूँ
आपने भी आन घेरा

बोलिए क्या चाहिए था
जन्म से ही हूँ, करन

१३ अप्रैल २०१५.
 


 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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