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                  अनुभूति में राम सेंगर 
					की रचनाएँ-
 गीतों में-
 एक गैल अपनी भी
 किसको मगर यकीन
 धज
 बीजगुण
 पानी है भोपाल में
 रहते तो मर जाते
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					बीजगुण 
					
 है निषेध का ज़हर पुराना
 तो क्या कीजे
 पानी को पानी-सा पी रहे
 
 इसी लाल-पीली आँधी में
 अपने से, अपनों से, सपनों-से टूटे हैं
 इसी लाल-पीली आँधी में
 आँधी के बाद के अजनबी विश्वासों की
 रोमांचक एक कहानी रहे
 
 मिल गया कसीदा सो काढ़ा
 रहे विघ्नसंतोषी वक्त के निशाने पर
 मिल गया कसीदा सो काढ़ा
 औकातें सबकी अपनी-अपनी तुरूपें हैं
 बावजूद इसके बाकी रहे
 
 युद्धाभ्यासों में दिन बीते
 मूढ़ दुर्विनीत-अहंभारिल-गतिरोधमयी
 युद्धाभ्यासों में दिन बीते
 प्राणान्तक दुर्गति में भाषा कैसे साधी
 मकसद के बावरे धुनी रहे
 
 मुक्ति कहाँ, बाजी ही पलटी
 कालचक्र में उलझी बुद्धि का विलास बने
 मुक्ति कहाँ, बाजी ही पलटी
 तर्क को उलट कर, सब जीते अंधी रौ में
 हम में वे बीजगुण नहीं रहे
 
 सांगीतिक पीठि के सहारे
 खींच रहे खुद को उपहास के दलिद्दर से
 सांगीतिक पीठि के सहारे
 सामाजिक पृष्ठभूमियों में आँखें खोले
 जीने के यों भी आदी रहे
 
 २६ सितंबर २०११
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