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                  अनुभूति में राम सेंगर 
					की रचनाएँ-
 गीतों में-
 एक गैल अपनी भी
 किसको मगर यकीन
 धज
 बीजगुण
 पानी है भोपाल में
 रहते तो मर जाते
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					रहते तो मर जाते
 ताराचंद, लोकमन, सुखई
 गाँव छोड़कर चले गये
 गाँव, गाँव-सा रहा न भैया
 रहते तो मर जाते
 
 धंधे-टल्ले बन्द हो गये
 दस्तकार के हाथ कटे
 लुहरभट्ठियाँ फूट गयीं सब
 बिना काम हौसले लटे
 बढ़ई, कोरी, धींवरटोले
 टोले महज़ कहाते
 
 हब्बी, फत्ते और ईसुरी
 जात-पाँत की भेंट चढ़े
 भाग गया सुलतान हाथरस
 पापड़ बेले बड़े-बड़े
 रिक्शा खींच रहा मुँहबाधे
 छिपता नहीं छिपाते
 
 तेलीबाड़ा, रजबाड़ा था
 मलबे से झाँकता नहीं
 शहजादी, महजबीं, जमीला
 किधर गयीं, कुछ पता नहीं
 पागल हुआ हशाक, दिखे अब
 कहीं न आते जाते
 
 टुकड़े-टुकड़े बिकी ज़मीनें
 औने-पौने ठौर बिके
 जीने के आसार रहे जो
 चलती बिरियाँ नहीं दिखे
 डब-डब आँखों से देखे
 बाजे के टूटे पाते
 
 २६ सितंबर २०११
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