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                  अनुभूति में राम सेंगर 
					की रचनाएँ-
 गीतों में-
 एक गैल अपनी भी
 किसको मगर यकीन
 धज
 बीजगुण
 पानी है भोपाल में
 रहते तो मर जाते
 |  | एक गैल अपनी भी 
					
 माँद में नहीं हैं हम
 माँद में नहीं
 
 हिहिंयाना-मिमियाना भाषा के खूँटे पर
 वहीं मूतना, गोबर करना
 विदिशा-भोपाल के मदरसों ने इसे कहा
 अनुभव के सत्य से गुजरना
 
 सामाजिक पार्श्वभूमि जीवन के सुख-दुख की
 मूर्त रूपसत्ता में पकड़ो तो जानोगे
 हम निगूढ़ खोज की सडाँध में नहीं
 
 मोखा सिरहाने का, खुला हुआ, बंद नहीं
 चश्मा फिर पोंछ कर लगायें
 और बात करते हैं, पीने की, खाने की
 कविता को बीच में न लायें
 
 विह्वल संवेदन से, बात या विचारों को
 जिस हद तक बना, काव्य संभव कर पाए हैं
 भरमाए किसी कूद-फाँद में नहीं
 
 जीवनाभूति, क्यों न बदलेगी साथ-साथ
 उमर बढ़ेगी जितनी जैसे
 व्यक्तिचेतना या विक्षोम दिशासंकेती
 मान घटे पर भी अक्षय-से
 
 जंगल से जन तक की, इन वर्तुल गैलों में
 एक गैल अपनी भी, ठीहे पर खुलती है
 लक्ष्य हमारे बूढ़े चाँद में नहीं
 
 २६ सितंबर २०११
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