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अनुभूति में सोम ठाकुर की रचनाएँ—

गीतों में-
खिड़की पर आँख लगी
मन जंगल के हुए
प्रेमा नदी
सूर्यमुखी फूल
स्वर की तरंगें
वेला संवत्सरा
हवाएँ संदली हैं

संकलन में-
मेरा भारत- तिरंगा
         राष्ट्र देवता
         वंदन मेरे देश
मातृभाखा के प्रति- राजभाषा वंदन

 

वेला संवत्सरा

हेमंत की पैनी हवा
वेला हुई संवत्सरा

जैसे शकुन तिथि तीज का
यह जन्म
ऋतु - संबीज का
लेकर परीक्षित गोद में
घूमे अधीरा उत्तरा

लो, दृष्टि आँके ताल की
छवियाँ
अपत्रित डाल की
निरखे खुला आकाश भी
यह सृष्टि नील दिगंबरा

मुक्ता बनेगी हर व्यथा
सुनकर
हरी अपनी कथा
है आज तो पतझार से
हर ओर पीत वसुंधरा

२१ मई २०१२

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