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अनुभूति में सुरेन्द्र शर्मा की रचनाएँ—

नई रचनाओं में-
अंतिम पहर रात का
आओ ऐसा देश बनाएँ
पनघट छूट गया
बजता रहा सितार

गीतों में-
अरे जुलाहे तूने ऐसी
आँगन और देहरी

आरती का दीप
ओ फूलों की गंध
ओ मेरे गाँव के किसान
जिंदगी तुम मिली
जिंदगी गीत है
मन मंदिर में
राह में चलते और टहलते
सूत और तकली से

 

आरती का दीप

आरती का दीप बनकर
मैं जला हूँ प्रार्थना में
मैं हुआ अभिव्यक्त फिर से
गीत की ही
साधना में

एक घण्टी-सी बजी और
खोल आया द्वार मन के
डूबकर फिर कल्पना में
छोड़ आया प्राण तन से
शब्द के स्वर में उतकर
लीन हूँ
आराधना में

टूटती निस्तब्धता तो
उभरते हैं स्वर प्रखर हो
डूबते उत्तर कभी तो
प्रष्न उठते हैं मुखर हो
मौन के अन्तिम चरण में
व्यक्त हूँ
हर भावना में

पीर से विगलित हृदय की
अश्रु निमिलित वेदना में
प्रेम में, करुणा में डूबी
हर मृदुल संवेदना में
सत्य में, शिव में मनोरम
सुन्दरम्
सद्भावना में

गीत झंकृत है सदा से
विश्व की नव चेतना में
सूक्ष्म में, स्थूल में,
जड़ में हमारी चेतना में
व्यक्त है अव्यक्त की
अनुभूत हर
संभावना में

२ जुलाई २०१२

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