अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुरेन्द्र शर्मा की रचनाएँ—

नई रचनाओं में-
अंतिम पहर रात का
आओ ऐसा देश बनाएँ
पनघट छूट गया
बजता रहा सितार

गीतों में-
अरे जुलाहे तूने ऐसी
आँगन और देहरी

आरती का दीप
ओ फूलों की गंध
ओ मेरे गाँव के किसान
जिंदगी तुम मिली
जिंदगी गीत है
मन मंदिर में
राह में चलते और टहलते
सूत और तकली से

 

अरे जुलाहे तूने ऐसी

अरे जुलाहे तूने ऐसी, कैसी गाँठ लगाई
टूटे धागों पर भी तेरी, गाँठ नज़र नहीं आई

मैंने देखी तेरी चादर, गाँठ नहीं मिल पाई
मैंने तो रिश्तों की चादर, गाँठ गठीली पाई
ऐसे टूटे मन के मनके, माला ना बन पाई
रिश्तों के जब गाँठ लगी तो, आँख किरकिरी आई

कबीरा के ताने-बाने से, चादर ना बुन पाई
ढाई आखर पीढ़ी पढ़ गई, पंडित नहिं बन पाई
जिस धागे को जोड़ा उसकी, गाँठ कहाँ टिक पाई
टूट-टूट कर टूटा धागा, चादर ओढ़ी न जाई

रंग उड़ा जब चादर धोई, फटी जब पाती लगाई
पाँव पसारे इतने लम्बे, तन भी नहिं ढक पाई
सब घूमें ले फटी चदरिया, गाँठ गठीली भाई
दर्द लिए टूटी गाँठों का, चादर छोड़ी न जाई

२ दिसंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter