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२६. ११. २०१२

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दिन

 

अपने आँगन
कब आया कोई त्योहारी दिन ?
सौदेबाजी करने आते हैं व्यापारी दिन

कागज पर
सर रखकर सोये
जागे कागज पर
हम सूरज के साथी
दिन भर भागे कागज पर
कागज पर बीता अपना तो
हर सरकारी दिन !

उम्मीदों का
बोझ उठाए झुककर हम चलते
जैसे बच्चों पर भारी
उनके अपने बस्ते
उँगली थामें
भूल-भूलैया में गांधारी दिन !

फूलों का मौसम
पेडों पर खुलकर आया है
बरसों से
बिछुडे साथी की यादें लाया है
सूखी घास में
फेंक गया है फिर चिंगारी दिन !

बनवारीलाल 'खामोश'

इस सप्ताह

गीतों में-

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बनवारीलाल खामोश

अंजुमन में-

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महेन्द्र हुमा

छंदमुक्त में-

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दिविक रमेश

दोहों में-

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सत्यनारायण सिंह

पुनर्पाठ में-

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इंदुकांत शुक्ल

पिछले सप्ताह
बालदिवस विशेषांक में

बाल गीतों में-

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आइसक्रीम, खेल, गौरैया, चंदा तारे, चिड़िया, चीं चीं चूँ चूँ, चूहा बिल्ली, जल और झरना, तितली और सुगंध, दिशाएँ, परिवार, पिता बाबा चाचा मामा, पेड़, बंदर, बँदरिया, मकड़ी मच्छर, मुर्गा, मेरा भैया, रेलगाड़ी, सर्दी का मौसम, सवेरा, सीख और कविता, सूरज

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

   
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