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अनुभूति में अमित दुबे की रचनाएँ —

अंजुमन में—
इरादों का
खत में
बज्म थी तारों की
मेरी हर चीज में
समन्दर की लहरों सी

बज़्म थी तारों की

बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था
धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था

इक नदी थी नाव भी थी और था मौसम हसीं
साथ तुम थे बाग़ गुल थे इश्क मस्ताना भी था

यार की गलियाँ गया मैं फिर से लेकर आरज़ू
कुछ पुराने ख्वाब थे हर सिम्त वीराना भी था

कैसे - कैसे लोग मिलते हैं यहाँ देखो सही
बात में चीनी घुली थी दिल मगर काला भी था

वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम
ज़िन्दगी गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था

१० फरवरी २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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