अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आशीष श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
कभी रोटी नहीं मिलती
बेताब तलाशों में
सन्नाटे की शहनाई
सीख गए

अंजुमन में--
आज बरसों हुए
गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का
जैसे कभी अपना माना था
दिल को बचाना मुश्किल था

दरिया ज़रा धीरे चल

 

सन्नाटे की शहनाई

सन्नाटे की शहनाई ने जब, तनहा तनहा कर डाला
हमने सब कुछ लिख कर ख़त को, पुर्जा पुर्जा कर डाला

चंद बशर, जब इक दिन अपनी, सोई बिसातें जान गये
एक समंदर हाथ में लेकर, कतरा कतरा कर डाला

तुम थी, मैं था, और शायद, ये सारी दुनिया अपनी थी
इक दीवार ने उठ कर सब कुछ, आधा आधा कर डाला

ईद आई तो मंदिर जाकर, अल्लाह तुझको याद किया
और होली में हर मस्जिद को, कान्हा कान्हा कर डाला

रफ्ता-रफ्ता जोड़ी थीं कुछ, ख्वाबों की ईंटें 'आशीष'
इक अपने ने सारा नशेमन, तिनका तिनका कर डाला

१९ जनवरी २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter