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अँधेरे इस क़दर हावी है
इसलिए कि
किसी का डर नहीं रहा
डर मुझे भी लगा
जिन्हें अच्छा नहीं लगता
ज़ुबां पर फूल होते है
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बढ़े चलिये
बड़े भाई के घर से
भले ही उम्र भर
मुझको पत्थर अगर
ये तो है कि
विचारों पर सियासी रंग
शिकायत ये कि
संसद में बिल
सभी तय कर रहे हैं

हमारे हमसफ़र भी
हमारी चेतना पर

 

किसी का डर नहीं रहा

कुछ भी कीजिये किसी का डर नहीं रहा,
ठीक से विरोध कोई कर नहीं रहा।

कोशिशों में खोट हो ये बात भी नहीं,
पर समय किसी तरह गुज़र नहीं रहा।

वो जो कर रहे हैं मेरे काम का नहीं,
मैं जो चाहता हूँ कोई कर नहीं रहा।

जो किसी की ज़िंदगी की आस बन सके,
बात में किसी की वो असर नहीं रहा।

इसलिये भी ज़िंदगी से निभ नहीं सकी,
मेरे सोच में अगर मगर नहीं रहा।

उसकी आस्था है लोकतंत्र में मगर,
बातचीत वो किसी से कर नहीं रहा।

मेरे शेर बार - बार याद आएँगे,
कल मैं आप सब के बीच अगर नहीं रहा।

२८ जनवरी २०१३

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