अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अशोक रावत की रचनाएँ—

नई रचनाएँ—
आसमाँ में
उजाले तीरगी में
जी रहे हैं लोग
भले ही रोशनी कम हो

अंजुमन में—
अँधेरे इस क़दर हावी है
इसलिए कि
किसी का डर नहीं रहा
डर मुझे भी लगा
जिन्हें अच्छा नहीं लगता
ज़ुबां पर फूल होते है
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बढ़े चलिये
बड़े भाई के घर से
भले ही उम्र भर
मुझको पत्थर अगर
ये तो है कि
विचारों पर सियासी रंग
शिकायत ये कि
संसद में बिल
सभी तय कर रहे हैं

हमारे हमसफ़र भी
हमारी चेतना पर

 

सभी तय कर रहे हैं

सभी तय कर रहे हैं बस मुझी से तय नहीं होते,
ये दिल के फ़ासले कारीगरी से तय नहीं होते।

ज़रा सा झाँक कर तो देखिये वीरान आँखों में,
सभी एहसास आखों की नमी से तय नहीं होते।

ये कारोबार में उलझे हुए लोगों की दुनिया है,
नज़र के फ़ैसले अब ज़िंदगी से तय नहीं होते।

न मेरी नींद मेरी है, न मेरे ख़्वाब मेरे हैं,
मेरे दिन रात अब मेरी ख़ुशी से तय नहीं होते।

छुपा होता है कोई दर्द ही हर मुस्कराहट में,
कभी सुख चैन होठों की हँसी से तय नहीं होते।

हमें कोई बताए तो कि आख़िर माजरा क्या है,
अँधेरों के सफ़र क्यों रौशनी से तय नहीं होते।

हम अपने दिल को आख़िर किस तरह ये बात समझाएँ,
जहाँ के रुख़ हमारी शायरी से तय नहीं होते।

२८ जनवरी २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter