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अनुभूति में ब्रजकिशोर वर्मा 'शैदी' की रचनाएँ-

अंजुमन में-
चुप था
जिस पर पैनी धार नहीं है
तुमने गर अपनाया होता
मुझको यह अहसास
सोच रहे सब

 

तुमने गर अपनाया होता

तुमने गर अपनाया होता
कुछ भी और न चाहा होता

पेड़ न गर कटवाया होता
सबके सर पर साया होता

ज़ख्म हर इक भर जाता अपना
तुमने गर सहलाया होता

शीशमहल की यह तनहाई
काश! कि घर बनवाया होता

इतने जुगनू बेमानी है
सूरज एक उगाया होता

ढूँढ रहे हो तुम अपनों को
मेरा पता लगाया होता!

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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