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अतीत
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अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे

मेरे गीतों में

 

बिखरे हैं जो कचरे

बिखरे हैं जो कचरे सरे बाज़ार में
लाइन लगी है उनके लिए सौ कतार में

वे सो रहे हैं बेखटक और बेहिसाब
पर, आज भी आगे हैं वो जीस्त की रफ़्तार में

हम ढल रहे हैं आज तलक इस खुमार में
आएगा कोई फर्क नए नेतावातार में

बारूद में जो ढल गए हैं जिस्म के कतरे
क्या वे रुला सकेंगे हमें आज के अखबार में

जीनत का ताज़महल या मज़नू की कब्रगाह
क्या तुम बना सकोगे मेरी यादगार में

ना तोप, ना बंदूक, ना ही एक मिसाइल
जब शब्द चीरते हों हमें आर-पार में

ना प्यार, ना विश्वास, ना ही महकते रिश्ते
बस! रह गए हैं अस्थि-पंजर आज के परिवार में

११ अप्रैल २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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