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अनुभूति में डॉ मनोज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

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भीड़ का हिस्सा रहा तब
लम्हे-लम्हे पर

सब सियासी चाल हैं
साज़िश फँसकर रह जाएगी
सूरज भी मेरी गोद में

छंदमुक्त में-
अतीत
क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़
स्वस्थ धुओं का सुख

अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे

मेरे गीतों में

  क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़

ख्यातिलब्ध फील्डों में
क्रिकेट-कुहराम मचाते खिलाड़ी
अपने शातिर गांडीव-बल्ले भाँजते
उतर आते हैं
भोली-भाली बेकुसूर हवाओं में

बर्दाश्त किया जा सकता है
उनका--
खुराफाती टी०वी० स्क्रीन से उतर कर
खालीपन में परोसे गए
समय को फांकते हुए,
लोगों की ज़िन्दगी में
दखल डालना,
या,
हाट, मेलों
प्लेटफार्मों और ट्रेनों में
छुट्टी मनाते घंटों में
यात्रियों की निरीह और
विकलांग बहसों में
बेमतलब घुस आना
और उनकी समूची दिनचर्या के
अहम् हिस्से का
सिर कलम कर देना

उनका क्या हक बनता है
की वे
अपनी गहमागहमी से
भोली-भाली हवाओं को
प्रदूषित कर दें
और चैन के पंछियों का
दम घोंट दें

क्रिकेट-दूषित हवाएँ
हराम कर रही हैं
उन क्षणों का व्यस्त होना
जिनके कड़ीबद्ध होने से
उड़ते बहुमंजिले सड़कदार पुल
पल में तय कर देते हैं
अगम्य स्थानों की
थकाऊ दूरी,
वे दुधमुँहों को औचक बालिग बना
उनके पेट में
भर देती हैं
फ़िज़ूल आँकड़ों का कूड़ा

मैं ऐसे संक्रामक प्रदूषकों को
चेता देना चाहता हूँ की
वे विकास और धंधों में
संवाहनीय हवाओं के साथ
खेल-खिलवाड़ न करें.

२४ सितंबर २०१२

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