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चलते जाने का धर्म
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हर दिशा में

अंजुमन में-
आपस में लड़कर
काल की तेज़ धारा
देखे दुनिया जहान
पल निकल जाएँगे

 

हर दिशा में

हर दिशा में घने कुहासे हैं
हम नदी-तट पे रह के प्यासे हैं

आपने आजतक नहीं पूछा
कौन हैं क्या हैं हम कहाँ से हैं

क्रांतियाँ और अपाहिजों का शहर
लोग बेवजह बदगुमाँ से हैं

आप जो भोज दे रहे थे हमें
उसकी आशा में हम उपासे हैं

हम तो सेवक हैं आपसे क्या कहें
जो शिकायत है आसमाँ से है

आप बहरे हैं ये है मजबूरी
और हम लोग बेज़ुबाँ-से हैं

२८ फरवरी २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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