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उत्प्रेरक

मेरी मुट्ठी का सागर
सींच सकता है किसी का जीवन मरु,
हाँ!
अब तुम मेरे पास हो,
कदमों का संबल हो तुम,
शब्दों की सार्थकता हो,
क्षण-क्षण का मापदंड तुम,
मेरे कंठ की गुणवत्ता हो तुम,
हाथों की लकीरें प्रवाहित हैं तुम्हीं से
तुम्हीं हो
जो विचारों के क्षितिज तक
समाहित है मुझमें।

२ अक्तूबर २००४

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