अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अविनाश वाचस्पति की रचनाएँ-

नई रचनाएँ
सड़क पर भागमभाग
पगडंडी की धार
मौसम से परेशान सब
आवाज आवाज है

कविताओं में
आराम
गरमी का दवा
जीना
पलक
पानी रे पानी
मज़ा
मैं अगर लीडर बनूँ तो
शहर में हैं सभी अंधे
साथ तुम्हारा कितना प्यारा

 

 

जीना?

सब चाहते हैं लंबा जीना
मैं चाहता हूँ सबसे लंबा
पर जब चढ़ना हो जीना
जान निकल जाती है सबकी

जीना चाहे छोटा ही हो
प्रेम और अर्थभरा हो
न सिर्फ़ निरर्थक बहा हो
छोटा जीना सुखद धरा हो

जीना सिर्फ़ उतना ही जीना
जितना जीना उमंग भरा हो
ऐसा जीना भी क्या जीना
जो लंबा हो, कष्ट भरा हो

मुझको राज दिलों पर करना
जीवन में उल्लास है भरना
कष्टों से कभी नहीं डरना
तिल-तिल करके नहीं है मरना

आँखों से अपनी नहीं गिरना
किसी की आँखों में नहीं चढ़ना
सदा सच्ची-सच्ची बातें करना
दुखी कभी किसी को न करना

9 जुलाई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter