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अनुभूति में हरे राम समीप की रचनाएँ

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अपनी मुहब्बत बनी रहे
क्या अजब दुनिया
क्या हुआ उपवन में
तू भूख, प्यास, जुल्म
सवाल काग़ज़ पर

अंजुमन में-
दावानल सोया है कोई
बदल गए हैं यहाँ
वेदना को शब्द
स्याह रातों में
हमको सोने की कलम

दोहे-
आएगी माँ आएगी
गर्व करें किस पर
प्रश्नोत्तर चलते रहे

छंदमुक्त में-
आस न छोड़ो
कविता भर ज़मीन
धीरज
पूजा
योगफल
शब्द
शोभा यात्रा
सड़क
सेल

 

वेदना को शब्द

वेदना को शब्द के परिधान पहनाने तो दो
जिंद़गी के भाव को तुम गीत में गाने तो दो

वक्त की ठंडक से शायद जम गई है ये नदी
देखना बदलेंगे मंज़र, धूप गर्माने तो दो

देख लेंगे हम अंधेरों की भी ताकत कल सुबह
हौसले के सूर्य को आकाश में आने तो दो

खोज ही लेंगे नया आकाश ये नन्हें परिंद
इन परिंदों को ज़रा तुम पंख फैलाने तो दो

मुद्दतों से सोच अपनी बंद कमरों में है कैद
खिड़कियां खोलो, ज़रा ताज़ा हवा आने तो दो

नासमझ है वक्त, लेकिन ये बुरा बिल्कुल नहीं
मान जाएगा, उसे इक बार समझाने तो दो

कब तलक डरते रहोगे, ये न हो, फिर वो न हो
जो भी होना है, उसे इस बार हो जाने तो दो।

१३ अप्रैल २००९

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