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` तुम्हारा न रहना (तीन छोटी कविताएँ)

तुम्हारे अनगिनत बिम्ब
झाँकते हैं मेरी ओर
अपने हजार हाथों से दस्तक देते हुए
और उलझन में रहता हूँ
कैसे उन्हें प्रवेश दूँ
जबकि जानता हूँ
वे आयेंगे नहीं भीतर
केवल झाँकते रहेंगे बाहर से
तुम्हारा पास न रहना
इसी तरह का आभास देता है मुझे हर पल ।


तुम्हारे न रहने पर

थोड़ा-थोड़ा करके
सचमुच हमने पूरा खो दिया तुम्हें
पछतावा है हमें
तुम्हें खोते देखकर भी
कुछ भी नहीं कर पाये हम,
अब हमारी ऑंखें सूनी हैं,
जिन्हें नहीं भर सकतीं
असंख्य तारों की रोशनी भी
और न ही है कोई हवा
मौजूद इस दुनिया में
जो महसूस करा सके
उपस्थिंति तुम्हारी,
एक भार जो दबाये रखता था
हर पल हमारे प्रेम के अंग
उठ गया है, तुम्हारे न रहने से
अब कितने हल्के हो गये हैं हम
तिनके की तरह पानी में बहते हुए ।


मैंने उसे खोया नही था

मैंने उसे कभी खोया नहीं था
वह अभी भी मौजूद था
कितनी आसानी से दिखाई देता था
उसका चेहरा
तस्वीर के बीचोंबीच से निकलता हुआ
अफसोस है, उसे मैं कुछ भी दे नहीं सका
उसे कुछ चाहिए भी नहीं था
जो उसे चाहिए था,
वे थे मेरे प्रेम के आँसू
जो अब कितनी आसानी से
झरते है मेरी आँखों से
अफसोस कितनी देर से
पहचान सका था मैं उसे

११ अक्तूबर २०१०

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