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मन या शरीर...?

कड़ी धूप के साम्राज्य के अंत को
देखता हूँ....
तपिश से जला शरीर
कितना दर्द सहता है
पता नहीं कि
इस शरीर को जब जलाया जाता है
तो खुद की ही आत्मा
उसे देख पायेगी
या नहीं !

मगर इतना तो सच हैं कि
कोई नहीं चाहता उस निश्चेत शरीर को
जिसको सजाने-सँवारने
और
सुख देने के लिए
हमने गुज़ार दी थी पूरी ज़िंदगी

अपने कंधे पे सवाल लिए
दौड़ते रहते हैं,
देखते हैं हम
एक-दूजे की आँखों में...
ये किसकी इच्छा है, किसकी भूख़ हैं?
मन की या शरीर की...?

२० फरवरी २०१२

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