अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रताप नारायण सिंह  की रचनाएँ-

छंद मुक्त में-
अभिशप्त
एक पल में स्वप्न
कब तक फिरोगे भटकते
जीवन की किताब
तुम्हारी प्रतीक्षा में
बस इतना ही करना
बदलाव
 

  अभिशप्त

मेरे अंधेरों के वर्क़ जो पलटे,
उस सूरज को ढूँढना मुमकिन नही.
मोतियों के भ्रम में अब नही चुनता
मैं आँसुओं के बूँद,
जुगनुओं की ताप से कोई फसल पकती नही।
मुझे फिक्र नही अब आईने की खरोंचों की,
मेरे हाथ के घावों का कोई मरहम नही।
मैंने मिला दिया है ज़हर उसकी जड़ों में,
जिस पेड़ पर उगते थे सपनों के फूल,
अब मेरी नींदों में कोई खलल नही।
अब तो बस इंतज़ार है खत्म होने का,
इस नींद से उस नींद तक का सफर।

२ फरवरी २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter