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                      अनुभूति में
                      प्रियंकर पालीवाल की रचनाएँ-  
						 
                      छंदमुक्त में- 
						अटपटा छंद 
                      
						इक्कीसवीं सदी की रथयात्रा 
						तुम मेरे मन का कुतुबनुमा हो 
						प्रतीत्य समुत्पाद 
                      
						वृष्टि-छाया प्रदेश का कवि 
						सबसे बुरा दिन  | 
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						इक्कीसवीं सदी की रथयात्रा 
						 
						भेड़िये 
						अब धम्मम् शरणम् गच्छामि 
						का जाप करते हुए 
						नगर के प्रवेशद्वार तक आ पहुँचे हैं 
						अनुरोध के अनुसार 
						पहला समागम 
						मेमनों के मोहल्ले में ही होगा 
						– अरे नहीं ! डर कैसा ? 
						देखते नहीं उनका पवित्र पीताम्बर शुभ्र यज्ञोपवीत 
						हवा की बेलौस चाल में 
						पताका सी फहराती रामनामी 
						अमन का राग गाती स्निग्ध वाणी 
						कैसा दिव्य आलोक है 
						मुखमंडल पर 
						ओह ! कैसा तेजोमय रूप है 
						धन्यभाग! धन्यभाग! 
						आचार्य श्री के 
						दिवराला-समागम में दिए गए 
						प्रवचन का ही तो पुण्य-प्रताप है 
						कि दिल्ली से दमिश्क तक दिवराला विख्यात है 
						यहाँ भी महिलाओं हेतु 
						पृथक व्यवस्था है 
						आचार्य जी को भान है कि 
						भारत एक गरीब मुल्क है 
						अत: घृत व समिधा की व्यवस्था 
						“पहले आओ-पहले पाओ” 
						के आधार पर निशुल्क है 
						पूज्यपाद का उद्घोष है कि वे 
						”विशुद्ध आदिम धर्म को आस्था का केन्द्र बनायेंगे” 
						सम्राट की ओर से सूचना – 
						”इक्कीसवीं सदी के रथारोही अब वाया दिवराला जायेंगे ।”
						२९ अगस्त २०११  |