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                      अनुभूति में
                      प्रियंकर पालीवाल की रचनाएँ-  
						 
                      छंदमुक्त में- 
						अटपटा छंद 
                      
						इक्कीसवीं सदी की रथयात्रा 
						तुम मेरे मन का कुतुबनुमा हो 
						प्रतीत्य समुत्पाद 
                      
						वृष्टि-छाया प्रदेश का कवि 
						सबसे बुरा दिन  | 
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						वृष्टि-छाया प्रदेश का कवि 
						 
						मैं हाशिये का कवि हूँ 
						मेरी आत्मा के राग का आरोही स्वर 
						केन्द्र के कानों तक नहीं पहुँचता 
						पर पहुँच ही जाते हैं मुझ तक  
						केन्द्र की विकासमूलक कार्य-क्रीड़ाओं के अभिलेख 
						 
						केन्द्र के अपने राजकीय कवि हैं 
						– प्यारे ‘पोएट लॉरिएट’  
						केन्द्रीय महत्त्व के मुद्दों पर 
						पूरे अभिजात्य के साथ 
						सुविधाओं का अध्यात्म रचते 
						जनता के सुख-दुख की लोल-लहरों से  
						यथासंभव मिलते-बचते 
						 
						हाशिए के इस अनन्य राग के 
						विलंबित विस्तार में 
						मेरे संगतकार हैं 
						जीवन के पृष्ठ-प्रदेश में 
						करघे पर कराहते बीमार बुनकर 
						राँपी टटोलते बुजुर्ग मोचीराम 
						गाड़ी हाँकते गाड़ीवान  
						खेत गोड़ते-निराते 
						और निश्शब्द 
						उसी मिट्टी में 
						गलते जाते किसान 
						 
						मेरी कविता के ताने-बाने में गुँथी है 
						उनकी दर्दआमेज़ दास्तान 
						दादरी से सिंगूर तक फैले किसानों का 
						विस्थापन रिसता है मेरी कविता से 
						उनके दुख से भीगी सड़क पर 
						मुझसे कैसे चल सकेगी 
						एक लाख रुपये की कार 
						 
						निजीकरण और मॉलमैनिया के इस 
						मस्त-मस्त समय में 
						देरी दूरी और दहशत के बावजूद 
						सार्वजनिक वाहन के भरोसे बैठे 
						हाशिये के कवि को 
						अपने पैरों पर भरोसा 
						नहीं छोड़ना चाहिये।
						२९ अगस्त २०११  |