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अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

बाज़ारू भाषा

सब्ज़ीवाले की टोकरी में
बैंगन प्याज मूली में
भाषा पा जाती है
सब्ज हरियाली

मछली वाली गंध में
उसकी लहराती चाल में
भाषा पा जाती है
मादक सुगंध

पानवाले की टोकरी में
कत्थे, चूने, सुपारी में
बतरस की बलिहारी में
भाषा बच जाती है सूखने से

भाषा पंडितों की जकडन
विद्वानों की पकड़
चाबुक-सी पड़ती है तो
भागी भागती है बाज़ार की तरफ़

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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