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अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

टूटना पहाड़ का

उसने सोचा
''मैं पहाड बनूँगा''
तमाम ढेलों के ढेर पर खड़े हो
हाथ फैलाए ओस बन्द हो गई मुठ्ठी में
वह सोचने लगा
बन्द हो गई समन्दर की किस्मत
उसने साँस खींची
जकड ली तमाम ज़िन्दगियाँ

उसे लगा कि वह पहाड़ हो गया
दोस्ती हुई हरियाली से
बादलों से चुहुलबाजी
सिर पर बुलन्दियों का सेहरा

हल्की-सी हवा क्या चली
वहाँ पड़ा था फिर से ढेलों का ढेर।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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