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अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

उसका आलिंगन

उसने बाहें फैलाईं
वह डूबने लगी
समन्दर बनती मांसपेशियों में
चुनने लगी सीप घोंघे
उसकी बाहे फैली रही
वह लेटी रही
गुनगुनी रेत पर
धूप में भीगती हुई-सी
इस बार फिर बढी उसकी बाहे

वह खोजती रही
खुद को
चट्टान होती मांसपेशियों में
अब वह टटोल रही है

घुप्प अंधेरे में
लौटती बाहों में चिपके
अपने आत्मविश्वास को।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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