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अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

उसके सपने

उससे कहा गया
सपने देखो
उसने तमाम कोशिश की
सपने देखने की
हर बार दिखा ढेर से भात पर
मछली का टुकड़ा

उससे कहा गया
सपने ऊँचे होने चाहिए
उसके सपने में
भात का ढेर ऊँचा होता गया
मछली का टुकड़ा बड़ा

उससे फिर कहा गया
''जैसा सपना देखोगे वैसा बनोगे''
उसके सामने सवाल था
भात बने या मछली का टुकड़ा

उसने सोचा भात से
कुनबे की भूख मिट जाएगी
मछली कोई भी फाँस सकता है

वह सपनो को भुला
भात की जुगाड़ में लग गया।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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