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अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

मौत और ज़िन्दगी


रेत की लहरों पर बिछी
काली रात है ज़िन्दगी
मौत है
लहराता समुन्दर

समुन्दर के सीने पर
तैरती लम्बी डोंगी है ज़िन्दगी
मौत है
फफोलों से रिसती समुन्दर की यादें

यादों की ज़मीन पर
उगी घास पतवार है ज़िन्दगी
मौत है
हरियाली की भूरी जडें

चाहे कितनी भी लम्बी हो
मौत की परछाई है ज़िन्दगी


वह खिलती है
दरख्त की शाखाओं पर
गुडहल के फूल सी
नुकीले दाँतों और पंजों को पसार
आमंत्रित करती है
काम मोहित मकड़े को

मकड़ा जानता है
भोग उसका नहीं
फिर भी आनन्दित है
मकड़ी देह पर
जो कसती है पंजे
ज़िन्दगी के मकड़े पर
वह भागता है छटपटाता हुआ

फिर लौट आता है अंध मोहित
अन्तत मौत निगल लेती है
घायल ज़िन्दगी को
आरंभ होती है सर्जन किया
मौत की आनन्द के जालों पर
फिर से जनमने लगती है

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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