अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में संध्या सिंह की रचनाएँ -

नये गीतों में-
कौन पढ़ेगा
अंतर्द्वंद्व
प्रतिरोध
मौसम के बदलाव
समय- नदी

गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए

दोहों में-
सर्द सुबह

छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना

सीलन

 

समय- नदी

समय- नदी ले गयी बहा कर
पर्वत जैसी उम्र ढहा कर
लेकिन छूट गए हैं तट पर
कुछ लम्हें रेतीले
।1
झौकों के संग रह रह हिलती
ठहरी हुई उमंगें
ठूँठ-वृक्ष पर ज्यों अटकी हों
नाज़ुक चटख पतंगे

बहुत निकाले फँसे स्वप्न पर
जिद्दी और हठीले
।1
कुछ साथी हैं सच्चे मोती
जीवन खारा सागर
रहे डूबते - उतराते हम
शंख सीपियाँ ला कर

अभिलाषाओं के उपवन को
घेरें तार कंटीले
।1
रूखे सूखे व्यस्त किनारे
लहरें बीते पल की
ज्यों खंडहर के तहखाने में
झलकी रंगमहल की

शब्द गीत के कसे हुए हैं
तार सुरों के ढीले

९ जून २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter