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अनुभूति में संतोष गोयल की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आज का सच
गर्मी का मौसम
चक्रव्यूह
जादुई नगरी में
जो चाहा
बच्चों ने कहा था
मरना
मेरा वजूद
युद्ध
साँस लेता इंसान

क्षणिकाओं में
फैसला
प्यास

संकलन में
गुच्छे भर अमलतास- पतझर

 

आज का सच

विवशता
उससे हम बँधना तो नहीं चाहते
पर
बाँध लेती है जोंक सी चिपक कर ।
छटपटायें कितना भी
खून तो रिसेगा ही ।
सब्र को नमक कहाँ मिल पाता है।
मन से निकल पड़ती आहें
उहापोह
खड़े कड़वे बोलो के दंश
कैसे नियन्त्रित करें
सहेजे खुद को
कैक्टसों की बाड़ तक नही मिल पाती है।
ऐसा लगता है
गले में बाँध दी है एक रस्सी वक्त ने
जिससे खींचे चले जाना ही अब हमारी नियति है
क्योंकि
सभी अपने से लगने वाले सम्बन्ध तक पराये हो चले हैं।
अब तो
अपने भीतर की
इस गर्म भभकती राख को
जिसके भीतर ही छिपी हैं
अनन्त दुख की चिंगारी
उसे कुरेदते रहना और
उसके फिर से भभक उठने का इन्तज़ार करना होगा।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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