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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

नई गज़लें
इतना ही अहसास

कभी जागीर बदलेगी
ज़िंदगी की साँझ

मुक्तक में
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जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
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अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  कभी जागीर बदलेगी

कभी जागीर बदलेगी, कभी सरकार बदलेगी,
मगर तकदीर तो अपनी बता कब यार बदलेगी?

अगर सागर की यूँ ही प्यास जो बढती गई दिन दिन,
तो इक दिन देखना नदिया भी अपनी धार बदलेगी।

हज़ारों साल में जब दीदावर होता है इक पैदा,
तो नर्गिस अपने रोने की तू कब रफ्तार बदलेगी।

सदा कल के मुकाबिल आज को हम कोसते आए,
मगर इस आज की सूरत भी कल हर बार बदलेगी।

वो सीना चीर के नदिया का फिर आगे को बढ़ जाना
बुरी आदत हो कश्ती की तो क्यों पतवार बदलेगी?

'शरद' पढ़ लिख गया है पर अभी फ़ाके बिताता है
ख़बर उसको न थी क़िस्मत जो हों कलदार बदलेगी।

११ जनवरी २०१०

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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