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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

नई गज़लें
इतना ही अहसास

कभी जागीर बदलेगी
ज़िंदगी की साँझ

मुक्तक में
तीन मुक्तक

कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई 
सिलवटें

अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई

चखने पड़ते है कड़वे घूंट
पीना होता है धुआं,
छोड़ना होता है अपनों का मोह,
अटपटा सा लगता है बेटी का डैडी कहना,
बेटे के लिए उपनाम बन जाता है
बाप का सम्बोधन,
हँसना पड़ता है प्रतिष्ठित जनों की उन बातों पर-
जिन पर हंसी नहीं आती,
आँख चुरानी होती है -
मां की बीमारी से,
बढ़ानी होती है पत्नी की व्यस्तता,
देर रात खाना गरम करने की,
कोसना पड़ता है संपादकों को,
वजह बेवजह बहस,
ऐसे शब्दों का प्रयोग
जिनके अर्थ समझ से परे हैं,
कॉफी हाउस के चक्कर,
खादी से प्रीत,
चेहरा मटमैला, कंधे पर थैला,
बेतरतीब कपड़े बढ़ी हुई दाढ़ी,
और इसके उपरान्त
लिखनी भी पड़ती हैं -
कुछ रचनाएँ,
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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