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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

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जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

 

मंज़ूर न था

वो तो शायद उसे मंजूर न था
आख़िरी वक़्त मेरा दूर न था।

मुझे मालिक का नमक ले बैठा
वरना मेरा कोई कुसूर न था।

किस ज़माने की बात करते हो
किस ज़माने में ये दस्तूर न था।

अब भले लाख बहाने कर लो
गांव तेरा शहर से दूर न था।

फिर गए साल ये सौगात मिली
फिर कई मांगों में सिंदूर न था।

जो हैं बदनाम उनका नाम हुआ
तू 'शरद' इसलिए मशहूर न था।

1 नवंबर 2006


 




 

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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