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इंतजार
कमीज
कि तुम बड़े हो
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जिंदगी
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समूह का चक्रव्यूह

छंदमुक्त में-
जिन्दा हो
बाजार
बेटी
भीतर कोई है
सुबह खुल रही है फिर से
सुरक्षा

 

बेटी

मेरी यादों मे खिलखिलाती है एक लड़की
लड़की जो बनी थी
माँ की लिपिस्टिक से
गूदड़ की गुड़िया से
तेल में चिपुड़ी दो चोटियों और
गालों पर फैले टेल्कम पाउडर से
काजल की सियाही से
आँगन की मिट्टी से
स्केचपेन की
रंगीन अनगढ़ डिज़ाइनों से
देर तक गुद्गुदाने वाली हँसी से
दफ़्तर से लौटे
पिता के कंधों पर झूलने की मासूम कोशिश से
स्ट्डी टेबल पर बैठे पिता की गोद में
घुसने वाली गौरैया से
किचन मे बेवक्त
बर्तनो को लुढ़काकर
दौड़ जाने वाली
बिल्ली सी लड़की मुझे याद है
आज दफ़्तर से लौटने पर
सजी धजी उस आधुनिका ने
सश्रम मुस्कराते हुए
मुझे पिता कहा

५ सितंबर २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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