अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में श्रीकांत सक्सेना की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
इंतजार
कमीज
कि तुम बड़े हो
क्यों मन चाहता है
जिंदगी
मुझे नहीं मालूम
समूह का चक्रव्यूह

छंदमुक्त में-
जिन्दा हो
बाजार
बेटी
भीतर कोई है
सुबह खुल रही है फिर से
सुरक्षा

 

जिंदगी

ज़िन्दगी
उठ,बेझिझक आँखों में आँखें डालकर तो देख
और अपने आग़ोश में जकड़ मुझको
नक़ाबों को हटा
और अपना चेहरा देखने तो दे
मैं जानूँ
तू पहेली है, अजूबा है, या फिर मस्ती की बेटी है
तू फैला ले सभी घेरे
ख़लाओं की ख़लाओं तक
तुझे तेरी हदों में और हदों के पार देखूँगा
तुझे ए ज़िन्दगी
मैं ज़िन्दगी के पार देखूँगा

लिहाज़ों के बहाने छोड़, मुँह मत फेर
और आँखें मिला मुझसे
तू अपने ख़ौफ़ और उन साज़िशों को आज़माकर देख
तेरी सब कोशिशों नाज़ो-अदा को आज देखूँगा
मैं तेरे बाँकपन के आज सब अंदाज़ देखूँगा
तुझे तेरी ही आँखों में उतर कर आज देखूँगा


३० जनवरी २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter