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कुछ खास लोग 
ऐसा भी महसूस किया है मैंने कभी 
कि कुछ रिश्ते बेनाम ही ठीक होते हैं 
तुम चाहो भी तो उन्हें नाम नहीं दे पाते हो 
जो इतने मधुर, पाक और सच्चे होते हैं। 
समाज की गन्दगी से अछूते 
ये रिश्ते देते जीवन को नए आयाम 
मरहम बन जाते ज़ख्म में 
हर हालत में देते आराम। 
ऐसा कुछ तुम्हारे साथ हो जाए 
तो रिश्ते को सहेज के, सँभाल के रखना 
अपने मन की बात मानना 
दुनिया से न हरगिज़ डरना। 
जिस तरफ़ ले जाए जीवन का बहाव 
बह लेना 
बोलता रहे कोई कुछ भी तुमको 
सह लेना 
जज़्बाती लगाव, इंसानियत का रिश्ता 
प्रेम, स्नेह, प्यार, मोहब्बत 
तुम जो चाहे इसे कह लेना। 
लोगों की तो आदत हैं 
बोलेंगे ही बोलेंगे 
तुम्हारे सारे संबंधों को 
तोलेंगे ही तोलेंगे। 
चलों मैं तुमसे ही पूछता हूँ 
तुम ही मुझकों बतला दो 
मान लो मेंरी बातों को 
या फिर उनको झुठला दो - 
रिश्तों को नाम मिले हैं 
तो क्या वे निभे हैं? 
संबधों में जुड़कर क्या लोग 
सचमुच संग चले है? 
मैंने महसूस किया है 
कुछ रिश्तों को 
मैंने भरपूर जिया है 
कुछ रिश्तों को - 
जिनकी मुझे शक्ल और सूरत 
नहीं दिखती  
जिन्हें मैं 
किसी जिस्म में कैद नहीं पाता 
सीधा-सीधा 
आत्मा से होता है जिनका नाता। 
कितने अच्छे लगते हैं न ऐसे रिश्ते, 
ऐसे रिश्ते 
जो दिल के रिश्ते होते हैं। 
क्या तुमने महसूस किया है ऐसा? 
कभी - कभी? 
४ जनवरी २०१०  |