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अनुभूति में तनहा अजमेरी की रचनाएँ-

छंद मुक्त में-
कभी देखना
कुछ खास लोग
दोस्ती
मनुष्य
मैं एक जगह टिक कर बैठूँ कैसे
मैंने मन को बाँध लिया है
ये क्या धुन सवार हो गई

  मनुष्य

पा-पाकर मंज़िल को
फिर चल देता हूँ आगे
खोजने नई मंज़िल को,
अजीब-सा स्वभाव है मेरा
बस चलता ही जाता हूँ
रुकता नहीं इक पल को।

चाँद और अंतरिक्ष मेरे लिए अब हो गए पुराने
खोज डाले हैं मैने नए कितने और ठिकाने
सैकड़ो पर्वत, मरुस्थल, नदिया और नाले
नया नहीं है कुछ भी, ये सब जाने पहचाने।

अब नहीं है कठिन कुछ
सब है मेरी मुट्टी में
कर लिया है मैंने सब कुछ
अपने ही काबू में,
सोचा था कभी रुक जाऊँगा
ले लूँगा विराम
जुटा लिए हैं साधन सारे
पर करता न आराम।

बैठ तो उकता जाता हूँ
चल दूँ तो रुकना चाहता हूँ
इसी उधेड़बुन में हरदम
आगे ही बढ़ता जाता हूँ
फिर भी नहीं होती है शान्त
ऐसी मेरी प्यास है,
और मिल जाए, और मिल जाए
ऐसी कैसी ये आस है?

४ जनवरी २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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