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अनुभूति में विनोद कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
आत्मकथ्य
कैसी आग
पूर्णिमा की रात
पृथ्वी–मंगल–युति (२००३) के प्रति
हाँफता हुआ शहर
हैवानियत के संदर्भ में

क्षणिकाओं में-
विनिमय
काला बाज़ार
उषःपान

हास्य–व्यंग्य में-
नकली
चोर
अपने पराए

संकलन में-
नया साल–अभिनंदन
अभिनंदन २००४

 

आत्मकथ्य

आत्मकथ्य अपने इर्द­गिर्द
अपने­आप में
जो विसंगतियाँ देखता हूँ
वही अनुभूतियाँ देती हैं आवाज
कि ‘लिखो­लिखो’ तब न चाहकर भी
निचुड़कर लिखता हूँ मैं
वही चीखते शब्द हैं
मेरी कविता …… केवल कविता ।

२४ दिसंबर २००३

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