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अनुभूति में विनोद कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
आत्मकथ्य
कैसी आग
पूर्णिमा की रात
पृथ्वी–मंगल–युति (२००३) के प्रति
हाँफता हुआ शहर
हैवानियत के संदर्भ में

क्षणिकाओं में-
विनिमय
काला बाज़ार
उषःपान

हास्य–व्यंग्य में-
नकली
चोर
अपने पराए

संकलन में-
नया साल–अभिनंदन
अभिनंदन २००४

 

तीन क्षणिकाएँ

विनिमय

वर्षात में
एक संपादक ने
रोकड़ मिलाया –
व्यावसायिक पत्र के
साहित्य संपादक की
छह रचनाएँ छापकर
पॉंच बार वहॉं
खुद को छपाया ।

काला बाजार

एक भव्य सेमिनार
‘काले धन के काले कारनामें’
विषय पर आयोजित करवाया
ठेकेदारों–कालाबाजारियों से ही
उन्होंने
सहयोग–सौजन्य
जमकर जुटाया।

उषःपान

लक्ष्मी की महिमा देखो
अचरज–भरा करिश्मा देखो
जवानी की लत को बुढ़ापे में छोड़ा
उषःपान तज
‘बेड टी’ से नाता जोड़ा ।

२४ दिसंबर २००३

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