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अनुभूति में वीरेंद्र जैन की रचनाएँ -

नए गीत-
जाने कितने साल हो गए
देखने को
बनवासों का कोलाहल है
मौत मुझको दे दे मोहलत
ये ही दिन बाकी थे
लिप्साओं ने सारे घर को

गीतों में-
कोई कबीर अभी ज़िंदा है
चाँदी की जूती

नई रचनाएँ-
अब निर्बंध हुआ
किताबें
नया घर

हास्य व्यंग्य में-
आमचुनाव में
क्योंजी आप कहाँ चूके?
खूब विचार किए
नाम लिखा दाने दाने पर
बेपेंदी के लोटे
मुस्कान ये अच्छी नहीं
ये उत्सव के फूल
हम चुनाव में हार गए

  चाँदी की जूती

नंगों की बस्ती में चलती
चाँदी की जूती
पैसा जिसके पास उसी की
बोल रही तूती

लक्ष्मी जिसके पास
उसी का रंग है चमकीला
कौन देखता चकाचौंध में
काला या पीला
धूम धड़ाके में दब जाती
उसकी करतूती
नंगों की बस्ती में चलती
चाँदी की जूती

उसकी गाड़ी उसके बैनर
उसके ही झंडे
उसके बाबा उसके मुल्ले
उसके ही पंडे
ठाकुर साहब साथ हो लिए
कर मूँछें नीची
नंगों की बस्ती में चलती
चाँदी की जूती

३ नवंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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