अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में वीरेंद्र जैन की रचनाएँ -

नए गीत-
जाने कितने साल हो गए
देखने को
बनवासों का कोलाहल है
मौत मुझको दे दे मोहलत
ये ही दिन बाकी थे
लिप्साओं ने सारे घर को

गीतों में
अब निर्बंध हुआ

कोई कबीर अभी ज़िंदा है
चाँदी की जूती

अंजुमन में-
किताबें

छंदमुक्त में-
नया घर

हास्य व्यंग्य में-
आमचुनाव में
क्योंजी आप कहाँ चूके?
खूब विचार किए
नाम लिखा दाने दाने पर
बेपेंदी के लोटे
मुस्कान ये अच्छी नहीं
ये उत्सव के फूल
हम चुनाव में हार गए

 

हम चुनाव में हार गए

ज्योतिषियों के सब भविष्यफल बिल्कुल ही बेकार गए
बाबा तेरी आशीषें ले हम चुनाव में हार गए

मंत्र पढ़े थे पूजा की थी अनुष्ठान करवाए थे
जाने कितने ओझाओं के झाड़ू भी तो खाए थे
कई पुरोहित हवन यज्ञ के पैसे ले हरिद्वार गए
बाबा तेरी आशीषें ले हम चुनाव में हार गए

माथे ऊपर रंग लगाया दाढ़ी नहीं बनाई थी
कई मज़ारों पर रेशम की चादर भी चढवाई थी,
गुरुद्वारों में शीश झुकाने लेकर घर परिवार गए
बाबा तेरी आशीषें ले हम चुनाव में हार गए

जहाँ धर्म की दूकानें थीं भीड़ जहाँ पर जाती थी
मैंने वहाँ वहाँ पर अपनी आमद दर्ज़ करा दी थी
रोटी रोज़गार के चक्कर सब धर्मों को मार गए
बाबा तेरी आशीषें ले हम चुनाव में हार गए

मेरा और तुम्हारा भी ये कितना फर्ज़ फजीता है
जो तुमको ठेंगा दिखलाता वो चुनाव में जीता है
पास हमारे आते थे जो सब उसके दरबार गए
बाबा तेरी आशीषें ले हम चुनाव में हार गए

16 मई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter