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अनुभूति में वीरेंद्र जैन की रचनाएँ -

नए गीत-
जाने कितने साल हो गए
देखने को
बनवासों का कोलाहल है
मौत मुझको दे दे मोहलत
ये ही दिन बाकी थे
लिप्साओं ने सारे घर को

गीतों में
अब निर्बंध हुआ

कोई कबीर अभी ज़िंदा है
चाँदी की जूती

अंजुमन में-
किताबें

छंदमुक्त में-
नया घर

हास्य व्यंग्य में-
आमचुनाव में
क्योंजी आप कहाँ चूके?
खूब विचार किए
नाम लिखा दाने दाने पर
बेपेंदी के लोटे
मुस्कान ये अच्छी नहीं
ये उत्सव के फूल
हम चुनाव में हार गए

 

मुस्कान ये अच्छी नहीं

इस देश के, इस दौर में,
जो है सहज, छोड़े रहो
झूठी शकल का आवरण,
है लाजिमी ओढे रहो
बारादरी दालान ये तेरी कसम अच्छी नहीं
इस उम्र में मुस्कान ये तेरी कसम अच्छी नहीं

नंगा खड़ा है, डाल काँधे
संस्कृति की लाश को
जब मिल रहा सम्मान,
ऐसे धार्मिक बदमाश को
सच्चाई की दूकान ये तेरी कसम अच्छी नहीं
इस उम्र में मुंस्कान ये तेरी कसम अच्छी नहीं

क्या फ़ायदा है आपको,
ऐसे ग़लत व्यापार से
जब दाम आधे भी नहीं
आदर्श के, व्यवहार से
सत्याग्रहों की शान ये तेरी कसम अच्छी नहीं
इस उम्र में मुस्कान ये तेरी कसम अच्छी नहीं

समझा रहा हूँ मैं,
मगर हैं आप हँसते जा रहे
संन्यासियों के जाल में
बेकार फँसते जा रहे
फिर कह रहा श्रीमान ये तेरी कसम अच्छी नहीं
इस उम्र में मुस्कान ये तेरी कसम अच्छी नहीं

16 मई 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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