अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अनिल प्रभा कुमार की रचनाएँ—

नई रचनाएँ—
माँ- तीन कविताएँ

छंदमुक्त में—
अच्छा हुआ
आभार

उम्मीद
जवाब
दूरी

धन्यवाद
धूप
पिरामिड की ममी
प्रेम कविताएँ

बंद आँखें
माँ दर मा

विमान
साथ
सूर्यास्त

  विमान

हर शाम
देखती हूँ सिर उठा कर
उलटा हुआ समुद्र
वहीं के वहीं ठहरे
थमे, सहमे से
तारे और चंद्र।
घर लौटते पंछियों से
उड़ते विमान।

जाने क्यों लगता है
जैसे सभी,
मेरे ही देश तक जाते हैं,
जैसे वहीं तक हो
बस इनकी उड़ान।
मेरी कल्पना में
बस एक ही रास्ता
एक ही मुकाम।

आँख भरी
कसक उठी
वहाँ मेरी माँ
करती होगी
मेरा इंतज़ार।

24 जुलाई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter