अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अवतंस कुमार की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
क़द्रदान
का से कहूँ
खुशियाँ

हादसा

छंदमुक्त में-
अहसास
आज मुझे तुम राह दिखा दो
दरमिया
पैबंद

विवेक
शाम और शहर
पत्ता और बुलबुला

मैं और मेरी तनहाई

 

का से कहूँ

का से कहूँ दरद मोरे दिल की
दूर भयीं गलियाँ बाबुल की

छूटे मीत कुदुम्ब अरु छूटे
रिश्तों के बंधन भी टूटे
छोटी पड़ी आँचल माई की
का से कहूँ दरद मोरे दिल की

उमड़-घुमड़ बदरा बरसाए
बिजुरी से अम्बर भरी जाए
न आई महक मालदा लंगड़े की
का से कहूँ दरद मोरे दिल की

तीरथ व्रत त्यौहार सब छूटे
चैता फगुआ औ' सावन के झूले
चौखट देवालय की बनी परजन की
का से कहूँ दरद मोरे दिल की

भैया-भगिनी दूर हुए अब
सपने आँचल के चूर हुए अब
फीकी पड़ी हुंकार पिता की
का से कहूँ दरद मोरे दिल की

३१ मई २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter