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अनुभूति में देवी नागरानी की रचनाएँ

नई ग़ज़लों में-
ज़माने से रिश्ता
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
मुझे भा गई
रियासत जब भी ढहती है

अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रो दिए

सदा धूप मे
सीप में मोती

शोर दिल में

कविताओं में-
भारत देश महान

 

 

रो दिए

देखकर मौसमों के असर रो दिए
सब परिंदे थे बे-बालों-पर रो दिए।

बंद हमको मिले दर-दरीचे सभी
हमको कुछ भी न आया नज़र रो दिए.

काम आए न जब इस ज़माने के कुछ
देखकर हम तो अपने हुनर रो दिए।

काँच का जिस्म लेकर चले तो मगर
देखकर पत्थरों का नगर रो दिए।

हम भी महफ़िल में बैठे थे उम्मीद से
उसने डाली न हम पर नज़र रो दिए.

फ़ासलों ने हमें दूर-सा कर दिया
अजनबी-सी हुई वो डगर रो दिए।

24 अगस्त 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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